मंगलवार, 23 सितंबर 2008

अंधेरे में नूर

एक तरफ़ जहाँ जात पात और मजहबी दीवारें लोगों के बीच दूरियां बढ़ा रही हैं वहीं वाराणसी की नूर फातिमा रोज़ा और शिव की पूजा साथ साथ करतीहैं। पांचो वक्त की नमाजी नूर फातिमा पेशे से वकील हैं। उन्होंने भगवान शिव का मन्दिर बनवाया है, जिसमें उनकी उतनी श्रद्धा है जितनी अल्ला ताला में। नूर के मुताबिक , शिव मन्दिर बनवाने का आदेश ख़ुद भगवान शंकर ने उन्हें सपने में दिया था। आजकल रमजान के महीने में उनकी जिम्मेदारियों बढ़ गई है। रोज़ा के साथ साथ उन्हें भगवान शिव की आरती भी करनी पड़ती है। नूर कहती हैं की वह शंकर जी की आरती करने के बाद ही रोज़ा खोलती हैं। नूर बेहद व्यस्त रहती है , लेकिन व्यस्तता में भी वह न तो सुबह की नमाज़ भूलती हैं और न तो रुद्राक्ष माला पर शिव का जाप। १०८ बार 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करने के बाद ही वह अदालत जाती हैं। शाम की आरती करके वह अपने परिवार के साथ रोजा खोलती हैं। नूर कहती हैं की रमजान का महीना सबसे मुक़द्दस महीना होता है। यह आपस में प्रेम व भाईचारा बढ़ाने के लिए आता है। उनके मुताबिक अल्ला, ईश्वर और गाड सब एक ही खुदा के नाम हैं।
(२२ सितम्बर २००८ को नवभारत टाइम्स में छपी ख़बर से साभार )

नूर फातिमा जी आप वाकई अंधेरे में नूर जैसी हैं। आप को सलाम।

5 टिप्‍पणियां:

Vivek Gupta ने कहा…

सुंदर आलेख |

Unknown ने कहा…

Hey Upar wale Aapka Jo bh naam Hai Khuda ya Bhagwan, kripya Syedain Zaidi jaise tathaakathit Patrakarita ke Mathadheshon ko bhi sahi raaasta dikhaye, Jo Noor Aapa jaise logon ke prayas pe pani pher dete hain

Satish Saxena ने कहा…

बेहद जरूरत है कि इस तरह के उदाहरण सामने लायें जायें! यह संकीर्णता को दूर करने में सहायक होंगे सिंह साहब !
इस उदाहरण को मैं साझा सरोकार पर देना चाहता हूँ आपको धन्यवाद के साथ ! आशा है कि आप स्वीकृति देंगे !

एस. बी. सिंह ने कहा…

धन्यवाद सतीश जी । ऐसे उदाहरण प्रचारित-प्रसारित होने ही चाहिए।

Unknown ने कहा…

काश कि वे लोग फातिमा जी से कुछ सबक ले सके जो धर्म को अपने फायदे के लिए तोड़-मरोड़कर इस्तेमाल करते है.... या वे लोग जो इस्तेमाल में आते है...