रविवार, 28 सितंबर 2008

भगवान की पत्नी

एक ठंडी रातमाल के बाहर एक छोटी लड़की खड़ी ठण्ड से काँप रही थीउसके पैरों में जूते नहीं थेकपडे भी साधारण से पहने थीवह सोच रही थी की भगवान अगर उसे जूते दिला देता तो.... । तभी एक महिला की नज़र उस पर पड़ीमहिला उसे प्यार से अपने साथ माल के अन्दर ले गईउसने उस लड़की के लिए जूते, मोजे और दस्ताने खरीदे। उसे नया स्वेटर दिलवायाउसके कानो पर नया मफलर लपेटते हुए पूछा अब ठीक है। 'जी' लड़की ने धीरे से कहाअच्छा अब चलते हैं- कह कर वह महिला बालिका को माल के बाहर छोड़ कर जाने लगी
'सुनिए' लड़की ने महिला को पुकारा।
'हाँ बेटे बताओ' महिला ने मुड़ते हुए पूछा ।
'क्या आप भगवान की पत्नी हैं' लड़की ने प्रश्न किया।

(कई साल पहले टाइम्स आफ इंडिया में छपी लघुकथा की स्मृति के आधार पर)

मंगलवार, 23 सितंबर 2008

अंधेरे में नूर

एक तरफ़ जहाँ जात पात और मजहबी दीवारें लोगों के बीच दूरियां बढ़ा रही हैं वहीं वाराणसी की नूर फातिमा रोज़ा और शिव की पूजा साथ साथ करतीहैं। पांचो वक्त की नमाजी नूर फातिमा पेशे से वकील हैं। उन्होंने भगवान शिव का मन्दिर बनवाया है, जिसमें उनकी उतनी श्रद्धा है जितनी अल्ला ताला में। नूर के मुताबिक , शिव मन्दिर बनवाने का आदेश ख़ुद भगवान शंकर ने उन्हें सपने में दिया था। आजकल रमजान के महीने में उनकी जिम्मेदारियों बढ़ गई है। रोज़ा के साथ साथ उन्हें भगवान शिव की आरती भी करनी पड़ती है। नूर कहती हैं की वह शंकर जी की आरती करने के बाद ही रोज़ा खोलती हैं। नूर बेहद व्यस्त रहती है , लेकिन व्यस्तता में भी वह न तो सुबह की नमाज़ भूलती हैं और न तो रुद्राक्ष माला पर शिव का जाप। १०८ बार 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करने के बाद ही वह अदालत जाती हैं। शाम की आरती करके वह अपने परिवार के साथ रोजा खोलती हैं। नूर कहती हैं की रमजान का महीना सबसे मुक़द्दस महीना होता है। यह आपस में प्रेम व भाईचारा बढ़ाने के लिए आता है। उनके मुताबिक अल्ला, ईश्वर और गाड सब एक ही खुदा के नाम हैं।
(२२ सितम्बर २००८ को नवभारत टाइम्स में छपी ख़बर से साभार )

नूर फातिमा जी आप वाकई अंधेरे में नूर जैसी हैं। आप को सलाम।